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पर्वत, जंगल पार करेगी बंजर में आ जाएगी / ओमप्रकाश यती

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पर्वत, जंगल पार करेगी बंजर में आ जाएगी

बहते–बहते नदिया इक दिन सागर में आ जाएगी


कोंपल का उत्साह देखकर शायद मोम हुआ होगा

वर्ना इतनी नरमी कैसे पत्थर में आ जाएगी


बहनों की शादी का कितना बोझ उठाना है मुझको

ये बतलाने वाली लड़की अब घर में आ जाएगी।


भाभी जब भाभी माँ बनकर प्यार लुटाएगी अपना

लछिमन वाली मर्यादा भी देवर में आ जाएगी।


कारण बहुत निराशा के हैं, मुश्किल हैं राहें लेकिन

कोशिश करने से तब्दीली मंज़र में आ जाएगी।


शाम हुई तो कुछ रंगीनी बढ़ जाएगी शहरों की

और गाँव की बस्ती काली चादर में आ जाएगी।