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पर जा पर जा / युद्धप्रसाद मिश्र

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भ्रष्ट प्रशासन पर जा पर जा
रक्त क्रान्तिको घन्क्यो बाजा
उठ्यो बबण्डर हुँदै सशक्त
महल अटारी अस्तब्यस्त
सामन्तीले सङ्गीन रोप्यो
जनजागृतिले दुनियाँ छोप्यो
झुपडी भन्दछ शहरै घेर्छु
धरती भन्छिन् काया फेर्छु
थाम्दा थाम्दा थाम्नै नसकी
पीडितहरूका टेवा मर्के
अड्दा अड्दा अड्नै नसकी
अग्ला घरका भित्ता चर्के
जाली दोषी क्रूर कठोर
पीडित जनका पसिना चोर
निम्न जनका रक्त पिपासा
धरतीका गुण गौरव नासा