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पश्चिम के समूह-जन / अज्ञेय

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पश्चिम के समूह-जन
एक मृषा जिस में सब डूबे हुए हैं-
क्यों कि एक सत्य जिस से सब ऊबे हुए हैं।

एक तृषा जो मिट नहीं सकती इस लिए मरने नहीं देती;
एक गति जो विवश चलाती है इसलिए कुछ करने नहीं देती।

स्वातन्त्र्य के नाम पर मारते हैं मरते हैं
क्यों कि स्वातन्त्र्य से डरते हैं।

डार्टिंगटन हॉल, टॉटनेस, 18 अगस्त, 1955