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पहिरे बर दू बीता के पागी जी / कुंज बिहारी लाल चौबे

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पहिरे बर दू बीता के पागी जी,
पीये ला चोंगी, धरे ला आगी जी ।
खाये ला बासी, पिये ला पेज पसिया ।
करे बर दिन -रात खेत मा तपसिया ।।
साधू जोगी ले बढ़के दरजा हे हमर,
चल मोर भइया बियासी के नांगर ।।