भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाखी / निज़ार क़ब्बानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ ! हरे पाखी
जबसे हुए हो तुम
मेरे प्रियतम

तबसे
ईश्वर विराजता है
वहीं ऊपर
आकाश में ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह