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पान / नज़ीर अकबराबादी

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यह रंगे पान से जो दहन<ref>मुँह</ref> उसका लाल है।
आज इन लबों से लाल की पूरी मिसाल है॥
अस्तग़फ़िरूल्लाह<ref>अल्लाह क्षमा करे</ref> लाल कहां और यह लब कहां।
ऐ बेवकू़फ़ कुछ भी तुझे इनफिजाल<ref>लज्जा</ref> है॥
खु़र्शीद जिससे लाल की होती है तरबियत<ref>प्रशिक्षण</ref>।
वह इन लबों के पान का अदना<ref>तुच्छ</ref> उगाल है॥
यों लाल गर्चे सुर्ख़ है पर संगे सख़्त है।
गो नर्म भी हुआ तो यह उसकी मजाल है॥
कहते हैं लाल टूट के होता नहीं दुरुस्त।
सच है, पर अपने दिल में तो और ही ख़याल है॥
हर दम सुखुन में टूट के बनता है लाल लब।
यह मोजिज़ा<ref>चमत्कार</ref> है या कोई सहरे हलाल है॥
बस लाल लब से लाल को निस्वत है क्या ”नज़ीर“।
यां लाल की भी अब तो जुबां मुंह में लाल है॥

शब्दार्थ
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