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पारिजात / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ / त्रयोदश सर्ग / पृष्ठ - ३

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कमनीय कामना
(12)

बहु गौरवित दिखाये जाये न गर्व से गिर।
सब काल हिम-अचल-सा ऊँचा उठा रहे शिर।
अविनय-कुहेलिका से हो अल्प भी न मैली।
सब ओर सित सिता-सी हो कान्त-कीत्तिक फैली॥1॥

विलसे बने मनोहर बहु दिव्यभूत कर से।
संस्कृति-सरोजिनी हो सरसाति स्वत्व सरसे।
भावे स्वकीयता हो परकीयता न प्यारी।
जातीयता-तुला पर ममता तुले हमारी॥2॥

न विलासिता लुभाये न विभूति देख भूले।
कृति-कंजिनी विलोके सद्भाव-भानु फूले।
उसको बुरी लगन की लगती रहें न लातें।
न विवेक-हंस भूले निज नीर-क्षीर बातें॥3॥

तन-सुख-सेवार में फँस गौरव रहे न खोती।
संसार-मानसर में मति क्यों चुगे न मोती।
लगते कलंक को वे क्यों लाग से न धोंये
कैसे कुलांगनाएँ कुल का ममत्व खोयें॥4॥

सारी कुभावनाएँ जायें सदैव पीसी।
कमनीय कामनाएँ हों कल्पवेलि की-सी।
सुविभूतिदायिनी हो बन सिध्दि-सहचरी-सी।
हो साधना पुनीता सब काल सुरसरी-सी॥5॥

मानस-मयंक जैसा हँस-हँस रहे सरसता।
सब पर रहे मनुजता सुन्दर सुधा बरसता।
करके विमुग्ध भव को निज दिव्य दृश्य द्वारा।
उज्ज्वल रहे सदा ही चित-चित्रापट हमारा॥6॥

(13)

बादल की बातें

क्यों भ रहते हैं इतने।
लाल-पीले क्यों होते हैं।
बाँधाकर झड़ी आँसुओं की।
किसलिए बादल रोते हैं॥1॥

रंग बिगड़ा जो औरों का।
घरों में तो वे क्यों पैठे।
ताकते मिले राह किसकी।
पहाड़ों पर पहरों बैठे॥2॥

किसलिए ऊपर-नीचे हो।
चोट पर चोटें सहते हैं।
चाट से क्यों गिरि-चोटी के।
चाटते तलवा रहते हैं॥3॥

तरस खाकर भी कितनों को।
वे बहुत ही तरसाते हैं।
कभी तर करते रहते हैं।
कभी मोती बरसाते हैं॥4॥

क्यों बहुत ऊपर उठते हैं।
किसलिए नीचे गिरते हैं।
किसलिए देख-देख उनको।
कलेजे कितने चिरते हैं॥5॥

कभी क्यों पिघल पसीजे रह।
प्यारे से वे जाते हैं भर।
कभी क्यों गरज-गरज बादल।
मारते रहते हैं पत्थर॥6॥

हवा को हवा बताते या।
हवा हित के दम भरते हैं।
भागते फिरते हैं घन या।
हवा से बातें करते हैं॥7॥

बरसता रहता है जल या।
आँख से आँसू छनता है।
कौन-से दुख से बादल का।
कलेजा छलनी बनता है॥8॥

दिखाकर अपना श्यामल तन।
कौन-से रस से भरते हैं।
घेरते-घिरते आकर घन।
किन दिलों में घर करते हैं॥9॥

जब मिले मिले पसीजे ही।
सके रस-बूँदों में भी ढल।
रंग अपना क्यों पानी खो।
बदलते रहते हैं बादल॥10॥

शारद-सुषमा
(14)

लसी क्यों नवल बधूटी-सी।
नीलिमा नीले नभ-तल की।
रँगीली उषा अंक में भर।
लालिमा क्यों छगुनी छलकी॥1॥

चन्द्र है मंद-मंद हँसता।
चाँदनी क्यों यों खिलती है।
बता दो आज दिग्वधू क्यों।
मंजु मुसुकाती मिलती है॥2॥

बेलियाँ क्यों अलबेली बन।
दिखाती हैं अलबेलापन।
पेड़ क्यों लिये डालियाँ हैं।
फूल क्यों बैठे हैं बन-ठन॥3॥

तितलियाँ नाच रही हैं क्यों।
गीत क्यों कीचक गाते हैं।
चहकती हैं क्यों यों चिड़ियाँ।
मधुप क्यों मत्त दिखाते हैं॥4॥