भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुलिया / स्वरांगी साने

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीच पुलिया थी
सो उतर जाते लोग उस पार
फिर आते रहे इस पार

पुलिया को न तो उधर जाना था
ना ही इधर आना था
बस बीच में बने रहना था

पुलिया ने सब सहा
किसी का छलका पानी
किसी का पसीना
किसी का नमक।

पुलिया ने सब देखा
किसी के सपने
किसी के आँसू
किसी का प्यार
पर कहा कुछ नहीं
पुलिया रही बीच में
तो होती रही सबकी आवाजाही आसान।

मनों टन बोझ ने उसे थका दिया
जब वह ढह गई
तब सोचा सबने पुलिया के बारे में।