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पेड़ की तरह / राजेश जोशी

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पेड़ की तरह सोचता हूँ
पेड़ भर
ऊँचा उठकर।

पेड़ भर सोचता हूँ
पेड़ भर
चौड़ा होकर।

इसी से
जंगल नाराज़ है।