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प्रकृति में तलाश नहीं सामंजस्य की / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / वरयाम सिंह

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मैं कोई सामंजस्य नहीं ढूँढ़ रहा प्रकृति में
किसी तरह का विवेक-सम्मत समानुपात
देखने को नहीं मिला है मुझे
निर्मल आकाश या चट्टानों के गर्भ में ।

कितना दुराग्रही है यह संसार !
हताशा से भरे हवाओं के संगीत में
हृदय को सुनाई नहीं देतीं सुसंगत ध्वनियाँ
आत्मा को अनुभव नहीं होते सुगठित स्वर ।

पर पतझड़ के सूर्यास्त के शान्त क्षणों में
जब चुप पड़ जाती है हवा दूर कहीं
जब क्षीण आभा के आलिंगन में
अर्द्धरात्रि उतर आती है नदी की ओर,

जब दुर्दान्त क्रिया-कलापों और
बेमतलब बोझिल श्रम से थककर
थकावट की सहमी उद्विग्न अर्द्धनिद्रा में
चुप पड़ने लगता है सांवला जल,

जब अन्तर्विरोधों के विराट संसार का
जी भर जाता है निष्फल खेल से
तब जैसे पानी की अथाह गहराइयों में से
मानव पीड़ा का मूर्तरूप उठता है मेरे सामने ।

और इस क्षण संतप्त प्रकृति
लेटी होती है कठिनाई से सांस लेती हुई
उसे पसन्द नहीं होती हिंस्र स्वच्छन्दता
जहाँ कोई अन्तर नहीं अच्छे या बुरे में ।

उसे सपनों में दिखता है टरबाइन का चमकता सिरा
और विवेकपूर्ण श्रम की लयात्मक ध्वनियाँ,
चिमनियों का गाना और बान्धों की लाली
और बिजली के करण्ट से भरे तार ।

इस तरह अपनी चारपाई पर सोते हुए
विक्षिप्त लेकिन स्नेहिल माँ
छिपाती है अपने में एक सुन्दर संसार
बेटे के साथ मिलकर सूर्य को देखने के लिए ।

1947

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए

         НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
      Я не ищу гармонии в природе.

     Я не ищу гармонии в природе.
     Разумной соразмерности начал
     Ни в недрах скал, ни в ясном небосводе
     Я до сих пор, увы, не различал.
     Как своенравен мир ее дремучий!
     В ожесточенном пении ветров
     Не слышит сердце правильных созвучий,
     Душа не чует стройных голосов.
     Но в тихий час осеннего заката,
     Когда умолкнет ветер вдалеке.
     Когда, сияньем немощным объята,
     Слепая ночь опустится к реке,
     Когда, устав от буйного движенья,
     От бесполезно тяжкого труда,
     В тревожном полусне изнеможенья
     Затихнет потемневшая вода,
     Когда огромный мир противоречий
     Насытится бесплодною игрой,--
     Как бы прообраз боли человечьей
     Из бездны вод встает передо мной.
     И в этот час печальная природа
     Лежит вокруг, вздыхая тяжело,
     И не мила ей дикая свобода,
     Где от добра неотделимо зло.
     И снится ей блестящий вал турбины,
     И мерный звук разумного труда,
     И пенье труб, и зарево плотины,
     И налитые током провода.
     Так, засыпая на своей кровати,
     Безумная, но любящая мать
     Таит в себе высокий мир дитяти,
     Чтоб вместе с сыном солнце увидать.
     —
      1947