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प्रणय निवेदन / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / अनिल जनविजय

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तुझे चूम लिया मैंने फिर जादू से साध लिया,
खुले खेत में हवा से विवाह-बन्धन में बाँध लिया।
जकड़ लिया तुझको, मैंने प्रेम मेखला में अपनी
अनमोल, अलभ्या प्रिया को अपनी नाध लिया ।

मस्त नहीं है, मेरी चम्पा, उदास नहीं क्षणभर को,
घुप्प अन्धेरे आकाश से धरती पर उतर आई है वो ।
ब्याह-गीत है कोई सुन्दर, जो मस्त करे मन को,
सितारा है, पगली प्रिया मुझको बहुत भायी है वो।

तेरे घुटनों पर झुक गया मैं, ओ मेरी प्रियतमा !
और फिर पूरी ताक़त से मैं उनसे लिपट गया ।
कड़वी-मीठी जैसी भी है, तू मेरी रहेगी, अनुपमा !
आँसूभरे नयनों औ’ कविता संग तुझसे चिपक गया ।

आधी रात को मेरे सामने तू खोले अपना चेहरा,
और फिर मुझे अपनी बोझिल आँखों में झाँकने दे ।
फिर मुझे चूमने दे अपने अर्धनग्न हाथों का घेरा,
सहलाने दे, पुरबिया इन काली भौहों को काँपने दे ।

इस रात हमारे मन जुड़ेंगे फिर कभी नहीं छूटेंगे,
जो सपना पूरा नहीं होगा, उसे भूल जाएँगे हम ।
क्या मुझे लग रहा है, बस, मन में कल्ले यूँ ही फूटेंगे ?
तू रो क्यों रही है, तीया, नेह में झूल जाएँगे हम ।

1957
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
         НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
                   «Признание»

Зацелована, околдована,
С ветром в поле когда-то обвенчана,
Вся ты словно в оковы закована,
Драгоценная моя женщина!

Не веселая, не печальная,
Словно с темного неба сошедшая,
Ты и песнь моя обручальная,
И звезда моя сумашедшая.

Я склонюсь над твоими коленями,
Обниму их с неистовой силою,
И слезами и стихотвореньями
Обожгу тебя, горькую, милую.

Отвори мне лицо полуночное,
Дай войти в эти очи тяжелые,
В эти черные брови восточные,
В эти руки твои полуголые.

Что прибавится - не убавится,
Что не сбудется - позабудется...
Отчего же ты плачешь, красавица?
Или это мне только чудится?

1957