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प्रथम अध्याय / प्रथम खंड / ऐतरेयोपनिषद / मृदुल कीर्ति

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ब्रह्माण्ड के अस्तित्व पूर्व तो एक मात्र ही ब्रह्म था,
पर ब्रह्म प्रभु के अन्यथा, कोई चेष्टा रत न गम्य था।
तब सृष्टि रचना का, आदि सृष्टि में, ब्रह्म ने निश्चय किया ,
अथ इस विचार के साथ ही, कर्म फल निर्णय किया॥ [ १ ]

द्यु-मृत्यु लोक व् अन्तरिक्ष व् लोक भूतल के सभी,
महः जनः तपः ऋत लोक अम्भः सूर्य चंद्र मरीचि भी ,
लोक त्रिलोकी चतुर्दश, लोक सातों, गरिमा की,
रचनाएं सब परमेश की और महत उसकी महिमा की॥ [ २ ]

सब लोकों की रचना अनंतर, ब्रह्म ने चिंतन किया,
लोक पालों की सर्जना व् महत्त्व का भी मन किया.
अतः ब्रह्म ने स्वयम जल से ब्रह्मा की उत्पत्ति की ,
अथ हिरण्यगर्भा रूप ब्रह्मा मूर्तिमान की कृति की॥ [ ३ ]

संकल्प तप से अंडे के सम, हिरण्यगर्भ शरीर से,
प्रथम मुख फ़िर वाक् अग्नि, नासिका से समीर से।
अथ क्रमिक रोम, त्वचा, हृदय, मन, चन्द्रमा, श्रुति व् दिशा,
नाभि अपान व् वीर्य, मृत्यु, क्रमिक सृष्टि की है दशा॥ [ ४ ]