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प्रभात सरसिज / परिचय

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प्रभात सरसिज का जन्म २९ सितम्बर, १९४९ को बिहार राज्य के जमुई जिले के गिद्धौर नामक गाँव में हुआ. उनके पिता वहाँ कम्पाउंडर हुआ करते थे. आर्थिक स्थिति साधारण थी. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव से ही हुई. उनका वास्तविक नाम प्रभात कुमार सिन्हा है, पर साहित्यिक क्षेत्र में वे हमेशा प्रभात सरसिज नाम से ही जाने जाते रहे. नौंवी कक्षा में पढ़ते समय उनके द्वारा लिखी गयी कहानी "शालीग्राम सिंह और उनका नौकर" पहली बार अखबार में प्रकाशित हुई. साहित्य एवं समाज सेवा के प्रति उनकी रूचि स्कूल-जीवन से ही थी. उन्होंने भागलपुर यूनिवर्सिटी से हिंदी में एम० ए० किया. उनकी कवितायेँ कई राष्ट्रीय समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं. भागलपुर एवं पटना आकाशवाणी केंद्र से उनकी कई कवितायें प्रसारित भी हुयीं हैं. १९७४ के जे० पी० आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई. इसी दौरान गिद्धौर में ही वे पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए, पर किसी तरह पुलिस को चकमा देकर थाने से भाग निकले. उन्हें पुनः पकड़ने की कोशिश में पुलिस ने उन पर गोलियां भी चलायी, पर भाग्य ने उनका साथ दिया और वे भाग निकले. उसके बाद उन्होंने खादीग्राम में आचार्य राममूर्ति के सचिव के रूप में काम करके आन्दोलन में अपनी भूमिका निभाई. शुरू से ही ईमानदारी एवं नैतिकता की राह पर चलने वाले प्रभात सरसिज ने विपरीत-से-विपरीत स्थितियों में भी कभी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया. कुछ वर्षों तक उन्होंने पटना आकाशवाणी केंद्र में नौकरी भी की, पर माँ के देहान्त के बाद वे पुनः गाँव लौट गए. वहाँ सरकार द्वारा चलाये जा रहे प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम में उन्होंने जमकर योगदान दिया. अपने गाँव में उन्होंने राजमणि इंटरमिडीएट कालेज एवं राजमाता गिरिराज कुमारी गर्ल्स हाई स्कूल खोलने में अहम् भूमिका निभाई. "जनहित" एवं अन्य कई सामाजिक संस्थाओं का भी उन्होंने संचालन किया. ७-८ वर्षों तक उन्होंने एस० पी० एस० वीमेंस डिग्री कालेज (जमुई) में लेक्चरर के रूप में नौकरी किया. इस दौरान वे दैनिक समाचार-पत्र "नवभारत टाइम्स" में स्वतंत्र पत्रकार की तरह भी काम करते रहे. फिर नौकरी छोड़कर सरकार द्वारा चलाये जा रहे साक्षरता अभियान में ५ वर्षों तक जिला सचिव के रूप में अवैतनिक कार्य कर जनता की सेवा की. राजनीति से भी वे हमेशा जुड़े रहे. पूर्व प्रधानमन्त्री श्री चंद्रशेखर जी के साथ उन्होंने देवघर से कटिनी तक की पद-यात्रा की. भारत सरकार के पूर्व विदेश एवं रेल राज्य मंत्री स्व० दिग्विजय सिंह एवं वर्त्तमान बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री श्री दामोदर रावत के राजनैतिक सहयोगी के रूप में भी उन्होंने ईमानदारी के साथ लम्बे समय तक अपनी भूमिका निभाई. परन्तु सत्ता के दांव-पेंच से बार-बार उनका मन खिन्न हो रहा.

अब वे कभी कवीन्द्र रवींद्रनाथ की कर्मभूमि शान्तिनिकेतन में रहते हैं और कभी-कभी पटना में.