भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम-कविता / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिसने दिया
लिया भी उसी ने ।

काहे का दु:ख
अगर ले-ले कोई
अपनी दी हुई चीज़ ।

कहाँ थी उम्र अपनी ?
कहाँ था सुख ?
दु:ख तक अपना कहाँ था भला ?
ज्ञान कहाँ था अपना?
कहाँ था अज्ञान ?

कहाँ थी हँसी ?
रुदन कहाँ था अपना ?
जिसका था ले गया वही ।