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प्रेम-पिआसे नैन / भाग 4 / चेतन दुबे 'अनिल'

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एक निमिष भर को हुआ, सपने में संयोग।
जीवन भर को लग गया, यह वियोग का रोग।।

सपना टूटा आँख में, बिखर गया आकाश।
मुस्कानों के गाँव में, मिली अश्रु की लाश।।

मुस्कानों के गाँव में, लगी अश्रु की आग।
सपने संन्यासी हुए, रूठ गया अनुराग।।

तू है मेरी रागिनी, मैं हूँ तेरा राग।
आ हिलमिल गाएँ प्रिये! मनभावन मृदु फाग।।

तू है मेरी चाँदनी, मैं हूँ तेरा चाँद।
कह दे तो आजाउँ मैं, सात समन्दर फाँद।।

मन- पंछी घायल हुआ, बिगड़ गया सब खेल।
अब मत उस पर साधिए, गुटका फँसी गुलेल।।

तू है मेरी प्रेरणा! तू ही मेरा प्यार।
तेरी सुधि में हो गया, मेरा दिल बीमार।।

एक आस उर में लिए, औ' अधरों पर प्यास।
ढाई आखर का सखे! बाँच रहा इतिहास।।

आँसू पीकर आँख में, देकर दिल को धीर।
विरह - मिलन के द्वन्द्व की, सही उमर भर पीर।।

प्रणय-जाल में फँस गया, यह पागल मन-मोर।
चित्त चुराकर ले गया, वह प्यारा चितचोर।।