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प्रेम- विधान / रश्मि विभा त्रिपाठी

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1
प्रेम- विधान
सर्वसुख- संधान
प्रिय- रूप में
ईश का वरदान
पा प्रफुल्ल हैं प्रान।
2
प्रतिपल ही
धरें तुम्हारा ध्यान
मन औ प्राण
गाएँ प्रेमिल गान
नि:शेष जग- भान।
3
वन्दनीय है
ये प्रेम- समर्पण
तुम विरले
उठाया ये बीड़ा
हर ली दुख- पीड़ा।
4
जीवन- रण
यही तुम्हारा ध्येय
रहूँ अजेय
मिला जो अप्रमेय
सुख का तुम श्रेय।
5
प्रत्येक बार
जीवन- नैया पार
लेता उबार
सुभाशीष विशिष्ट
प्रिय ही मेरे इष्ट।
6
मन विकल
अभिलाष प्रबल
करे प्रज्वल
प्रतीक्षा के प्रदीप
प्रिय आओ समीप।
7
है अविरल
भाव- नदी निर्मल
संतृप्त हुआ
मन का मरुथल
'पावन प्रेम- जल'।