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प्रेम में ज़रूरी / सुरेन्द्र रघुवंशी

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बहुत सुन्दर सजी-धजी आभिजात्य और सावधान हो दुनिया प्रेम करने के लिए
ये बिलकुल ज़रूरी नहीं

प्रेम करने के लिए ज़रूरी है
सुन्दर ह्रदय के गहरे ताल से
ऊपर उठता हुआ निश्छल प्रेम का श्वेत फव्वारा
जो नीचे भी गिरता है बहुत ख़ूबसूरती से
बूँद-बूँद में दर्शनीय होकर

प्रेम करने के लिए चाहिए आँखों में तरलता
जो हर वेदना के साथ बहने को तैयार हो

चाहिए ह्रदय में आकाश का विस्तार
जो संकीर्णताओं को तोड़कर बने

यदि प्रेम को रोग कहें तो इसमें
व्यापार और उसके उपकरण जैसे तराजू, बाट और गणित का सख़्त परहेज ज़रूरी है

ज़रूरी हैं सपनों की हरी-भरी और रंग-बिरंगे फूलों से युक्त धरती पर
उमंगों की ऊँचीं-ऊँची कुलाँचें ।