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प्रेम में विसर्जित किया मैंने / अरविन्द श्रीवास्तव

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कितना सहज और आत्मीय होकर
मैंने विसर्जित किया
प्रेम में सभी कुछ

कुंठा-द्वेष
राग-उपराग
साद-अवसाद
शौर्य-पराक्रम

प्रेम में- सौंपते हैं तुम्हें
धरती की लहलहाती फसलें
पत्तियों भरा अरण्य-वन
हृदय की कोमलता
अपनी परमप्रिय निद्रा
धमनियों के दौड़ते लहू
विनाश की सारी तैयारियाँ
हत्या-आत्महत्या का उतावलापन
कुछ शब्द और चालाकियाँ भी

करता हूँ विसर्जित प्रेम में-
दर्प-अहंकार
अकुलाहट-बैचेनी
ठाठ-बाट
वैभव-शौकत
हाड़-अस्थि

फुटकर तौर पर यही कुछ चीज़ें थीं
जिन्हें मैंने विसर्जित किया था

प्रेम में
मति और विवेक के पश्चात !