भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / निवेदिता चक्रवर्ती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म ही जीवन है
किंतु मृत्यु प्रेम सिखाती है
जब निष्प्राण हो जाती है देह
भस्म हो जाता है कण - कण
स्मृतियों को जब खरोंचते हो तुम चुपचाप
सुखद स्मृतियाँ, एक साथ बिताए पल
और जब वो पल बहुत ज्यादा नहीं मिल पाते
तब तुमको होती है अनुभूति
क्यों नहीं संबंधों में सुखद पल उगाते हो
प्रेम से भरे हुए पल
खिलखिलाती हँसी
शब्दों की चहक
हाथों का स्पर्श
विरासत में बस यही सौंप कर जाएंगे हम
बाकी सब तो माटी है
युगों की परिपाटी है