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प्रेयसीक विलाप / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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लागै बरखा इन्होर,
मारै बएसक जोर,
मिलनक आशामे बैसलि-
छी आबू ने चकोर।

बाटे तँ तकिते तकिते,
नयन सूखि गेलै,
प्रेयसीक विलापपर नहि
अहाँक ध्यान एलै।

ठनका गर्जय मांचल शोर,
तिरपित नृत्य मोरनी मोर।
मिलनक आशामे बैसलि,-
छी आबू ने चकोर।
बेदर्दी जुनि बनू,
मोन टूटि गेलै।
पावसक शीतलता-
आतप्त भेलै।

लुप्त भगजोगिनी दर्शए भोर,
लटकल मेघ गगन घनघोर,
किएक हृदय तोड़ि रहलहुँ।
हा! हम्मर मन चित चोर।