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फगुनहट (तर्ज होली) / कृष्णदेव प्रसाद

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चिउं चिउं चिरगुनियां करे अमवा के डार ॥1॥

सिहरामन रइनि बित्तल जाहे
झिपु झिपु अरुन के लाली लखा हे
ऊखा चुनरिया किनारी जना हे
लकदक सुंदर सिंगार ॥2॥

सीतल सीतल अनिल झकोरे
मन्जरि मन्जरि गन्ध बटोरे
सहमि सहमि मुंहमा पर मोरे
सींचइ बहियां उलार ॥3॥

चें चें चिल्लल चिल्ह झंकारे
कूं कूं कुऊं कुऊं कोइली पुकारे
महोखा पंडुकिया तान सकारे
फागुन केरि धमार ॥4॥

सकल प्रकृति मन मोद भरे हे
खुलखिलु हियरा में सबके बरे हे
हिलमिल सबजन प्रकट करे हे
सुख दामिनि संचार ॥5॥

हमरा लागी पिलेग गिरानी
संगी समाजिक झूठ बेमानी
भीम दलिदरा दाना ने पानी
खुल कलिया दे झमार ॥6॥