भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़ैज़ का पहला शेर / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लब बंद हैं साक़ी, मिरी आँखों को पिला दे
वो जाम जो मिन्नतकशे-सह्‌बा नही होता<ref>1928 में कॉलेज ऑफ़ स्यालकोट की साहित्यिक संस्था ’अख़वानुस्सफ़’ के तर्‌ही मुशायरे में पढ़ी गई ग़ज़ल का पहला शे’र । ’फ़ैज़’ तब इंटरमीडिएट के विद्यार्थी थे।</ref>

शब्दार्थ
<references/>