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फ़ोन /अवधेश कुमार

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नौमंज़िला इमारत चढ़ने में लगता है समय
जितना कि नौमंज़िला कविता लिखने में नहीं लगता ।

नौ मंज़िल चढ़कर मिला मैं जिस आदमी से
उससे मिला था मैं ज़मीन पर अपने बचपन में ।
वहीं पर उससे दोस्ती हुई थी।

इतनी दूर-
और नौ मंज़िल ऊपर
नहीं मिल पाता जब मैं उस दोस्त से, वह मुझे
जब बहुत दिनों बाद मिलता है
तो पूछता है कि
क्यों नहीं कर लिया मैंने उसको फ़ोन ?