भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फुटहा दरपन / लाला जगदलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरियर छइहाँ हर उदुप ले हरन हो गे
तपत, जरत-भूँजात पाँव के मरन हो गे।
घपटे रहि जाथे दिन-दिन भर अँधियारी
अँजोर के जब ले डामरीकरन हो गे।
कुकुर मन भूकत हवें खुसी के मारे
मनखे मनखे के अक्कट दुसमन हो गे।
जउन गिरिस जतके, ओतके उठिस ओ हर
अपत, कुलच्छन के पाँव तरी धन हो गे।
करिन करइया मन अइसन पथराव करिन
मन के दरपन हर फुटहा दरपन हो गे।
का करे साँप धरे मेचकी-अस जिनगी हर
निचट भिंभोरा-कस मनखे के तन हो गे।