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बंगले में / प्रेमशंकर शुक्ल

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जब सब आरती कर रहे थे

वह पौधों को

पानी देने में मगन था

भीतर ही भीतर

जब सब अपनी मनौतियों में

थे सराबोर

वह दुखी था--

कि अन्तत: उस बिल्ली को

बचाने में नहीं हुआ कामयाब

बंगले में

सम्पन्नता थी हर जगह

पर उसे ग़म था

आदमी के न होने का