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बदन में जो शरारें हैं, रहेंगे / ध्रुव गुप्त

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बदन में जो शरारें हैं, रहेंगे
तसव्वुर में सितारें हैं, रहेंगे

रहेगी पांव में आवारगी भी
जो घर हमने संवारे हैं, रहेंगे

वहां से आसमां अच्छा लगा था
वो जंगल भी हमारे हैं, रहेंगे

मेरे असबाब कमरे से निकालो
परिंदे ढेर सारे हैं, रहेंगे

हवा , तारें, अंधेरे, चांद, जुगनू
जो रातों के सहारे हैं, रहेंगे

मेरे अतराफ़ है कैसी उदासी
यहां जो ग़म के मारे हैं, रहेंगे

नदी आंखों में कोई है हमेशा
नदी के दो किनारें हैं, रहेंगे

मैं गीली आंख रख आया वहां पे
जहां सायें तुम्हारे हैं, रहेंगे

खुदा मालिक रहे ऐसे ज़हां का
यहां हम से बेचारे हैं, रहेंगे