भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बदरंग / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं बदरंग नहीं
सिर्फ बिछड़ा हुआ
रँग हूँ
तुम्हारी होली का

चलो
एक बार फिर
रँगों से खेले
होली
उम्मीदों से तो
खेल चुके