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बन में वह नंद नंदन बंसी बजा रहा है / प्रेमघन

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बन में वह नंद नंदन बंसी बजा रहा है।
मन में व्यथा मदन की मेरे जगा रहा है॥
जब से मनोज मोहन मन में समा रहा है।
जिस ओर देखती हूँ वह मुसकुरा रहा है॥
भौंहें मरोड़ कर मन मेरा मरोड़ता है।
नैनों की सैन से बस बेबस बना रहा है॥
सिर मोर मुकुट सोहै कटि पीत पट बिराजै।
गुंजावतंस हिय में बनमाल भा रहा है॥
कैसे करूँ सखी अब कलसे नहीं कल आती।
मन मोह कर वह मोहन मुझको भुला रहा है॥11॥