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बबूलों के पत्तों पे अब ना परोसो / डी. एम. मिश्र

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बबूलों के पत्तों पे अब ना परोसो
हमारा भरे पेट इतना परोसो

भकोसो न सब कुछ अकेले अकेले
ख़बरदार, हमको भी जेवना परोसो

विधायक से चाहे मिनिस्टर से पूछो
रहे ध्यान पर हमको कम ना परोसो

हमेशा न रहती किसी की हुकू़़मत
बही में लिखो हमको जितना परोसो

न भूलो कि सब कुछ ख़ुदा देखता है
ग़रीबों को जूठन न अपना परोसो

यही एक छोटी-सी बस इल्तिजा है
कोई और झूठा न सपना परोसो