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बरसाती रात सावन की / रामनरेश पाठक

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बरसाती रात सावन की
अभी आधी न बीती है

गगन के पास जब आँखें
पता तेरा गयीं लेने
लगे तब मुस्कुरा कर तुम
पता आना स्वयं देने

पिघलती बात सावन की
अभी सिहरी न बीती है

गली में बादलों को जब
भटकते देख मन सिहरा
गए तुम और छिप मुझसे
अधर का गीत तब बिखरा

कसकती बात सावन की
अभी विधवा न बीती है

कहीं कजरी, कहीं मल्हार
मन को हैं व्यथा देते
हवा के हर झकोरे
क्षीण बाती को कंपा देते

दहकती मोह की वरुणा
अभी करुणा न रोती है

बरसाती रात सावन की
अभी आधी न बीती है