भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्बर युग / एस. मनोज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निर्विघ्न भाव से जीते मानव का
विभिन्न विघ्नों से भर जाना
हंसते खिल खिलाते बच्चों के बीच
मातम पसर जाना
बाहर से घर तक
बालाओं का सशंकित रहना
बेखौफ जीते शहर का
खौफ से भर जाना।
क्या यह किसी बर्बर युग का इतिहास है
हाँ है
किंतु यह हमारे इतिहास के साथ
हमारा वर्तमान भी है।