भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बसंत के पौधे / हरिऔध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोंपलों से नये नये दल से।
हैं फबन से निहाल कर देते।
हो गये हैं लुभावने पौधे।
फूल हैं दिल लुभा लुभा लेते।

हैं सभी पेड़ कोंपलों से पुर।
है नया रस गया सबों में भर।
आम सिरमौर बन गया सब का।
मौर का मौर बाँध कर सिर पर।

लस रही है पलास पर लाली।
या घिरी लालरी बबूलों से।
है लुभाते किसे नहीं सेमल।
लाल हो लाल लाल फूलों से।

लह बड़ी ही लुभावनी रंगत।
फूल कचनार औ अनार उठे।
फूल पाकर बहार में प्यारे।
हो बहुत ही बहारदार उठे।

पा गये पर बहार सा मौसिम।
क्यों न अपनी बहार दिखला लें।
लहलही बेलि, चहचहे खग के।
डहडहे पेड़, डहडही डालें।

लस रही हैं कोंपलों से डालियाँ।
फूल उन को फूल कर हैं भर रहे।
हर रहा है मन हरापन पेड़ का।
जी हरा पत्ते हरे हैं कर रहे।

रस नया है समा गया जड़ में।
रंगतें हैं बदल रही छालें।
पेड़ हैं थालियाँ बने फल की।
फूल की डालियाँ बनीं डालें।

हैं उसे दे रहे निराला सुख।
कर रहे हैं तरह तरह से तर।
आँख में भर रहे नयापन हैं।
पेड़, पत्ते नये नये पाकर।

रंगतें न्यारी बड़ी प्यारी छटा।
कर रहे हैं लाभ मिट्टी धूल से।
पा रहे हैं पेड़ फल फल दान का।
कोंपलों, कलियों, फलों से, फूल से।

पेड़ प्यारे पलास सेमल के।
फूल पा लाल, लाल लाल हुए।
हैं बहुत ही लुभावने लगते।
लाल दल से लसे हुए महुए।

पाकरों औ बरगदों के लाल दल।
कम लुनाई से न मालामाल हैं।
हैं हरे दल में बहुत लगते भले।
डालियों की गोदियों के लाल हैं।

छा गई है बड़ी छटा उन पर।
बन गये हैं बहार के छत्ते।
हैं लुनाई विजय फरहरे से।
छरहरे पेड़ के हरे पत्ते।

हो गये हैं कुछ हरे, कुछ लाल हैं।
कुछ गुलाबी रंग से हैं लस रहे।
आम के दल रंगतें अपनी बदल।
बाँध कर दल हैं दिलों में बस रहे।

रस बहे बौर देख कर उन में।
उर रहे जो बने तवे तत्ते।
कर रहे हैं निहाल आमों के।
लाल नीले हरे भरे पत्ते।

है रही दिल लुभा नहीं किस का।
कोंपलों की लुभावनी लाली।
रस भरे फूल, छबि भरी छालें।
दल भरे पेड़, फल भरी डाली।

सोहते हैं नये नये पत्ते।
मोहती है नवीन हरियाली।
हैं नये पेड़ भार से फल के।
है नई फूल-भार से डाली।

फूल की फैली महक के भार से।
चाल धीमी है पवन की हो गई।
हैं फलों के भार से पौधे नये।
है नये-दल-भार से डाली नई।

जो न होती हरी हरी पत्ती।
कौन तो ताप धूप का खोती।
क्यों भली छाँह तन तपे पाते।
क्यों तपी आँख तरबतर होती।

धूप तीखी पवन तपी रूखी।
तो बहुत ही उसे सता पाती।
तर न करते अगर हरे पत्ते।
किस तरह आँख में तरी आती।