भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस अपना ही ग़म देखा है / विज्ञान व्रत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बस अपना ही गम देखा है।
तूने कितना कम देखा है।

उसको भी गर रोते देखा
पत्‍थर को शबनम देखा है।

उन शाखों पर फल भी होंगे
जिनको तूने खम देखा है।

खुद को ही पहचान न पाया
जब अपना अल्‍बम देखा है।

हर मौसम बेमौसम जैसे
जाने क्‍या मौसम देखा है।