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बस एक दर पे नज़र आके रुक गयी क्यों है / 'महताब' हैदर नक़वी

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बस एक दर पे नज़र आके रुक गयी क्यों है
फ़रेब्ख़ुर्दा तबीयत में बेहिसी क्यों है
 
हर एक सम्त से दुनिया बुला रही है मुझे
हर एक मोड़ पे रस्तों की भीड़ सी क्यों है
 
डरा रहें हैं मुझे दूर पास के मंज़र
मेरी ज़मीन मेरा साथ छोड़ती क्यों है
 
न कोई बात ही होती न मसअला होता
कुसूरवार है ये आँख देखती क्यों है
 
वही विसाल के मौसम वही बहार के दिन
ख़ुलूस-ए-यार में फिर इन दिनों कमी क्यों है