भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस गवैया / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलती बस की खड़ी भीड़ में
देखो बच्चा चूमता है
चूमता है दोनों हाथ
चूमता शीशे की पट्टियाँ
सूखा गला साफ़ करता है
होठों पर जीभ फिराता है
वह शुरू करेगा अब कोई गीत

दिन भर वह गा सके मधुरतम
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
निकलें गीत पेट से उसके
आओ बंधु! दुआ करें

रचनाकाल : 1991