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बहन शूरा के लिए / सिर्गेय येसेनिन / वरयाम सिंह

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तू सुना मुझे वह गीत
सुनाया करती थी जिसे बूढ़ी माँ !
मृत आशाओं पर दुखी हुए बिना
मैं भी दूँगा तेरा साथ ।

जानता हूँ, परिचित हूँ
इसीलिए तो उद्विग्‍न हूँ और चिन्तित भी
मुझे जैसे अपने ही घर में
सुनाई दे रहा है अपनी आवाज़ में कम्पन ।

गा तू, तेरी तरह मैं भी
इस तरह के गीत के साथ जैसे तू ।
बस जरा-सी ढँक दूँगा आँखें
कि दिखने लगेगा पुन: प्रिय वह रूप ।

गा तू ! आख़िर वह सौभाग्‍य है मेरा
कि यह सिर्फ़ मैं ही नहीं जिसे प्‍यार था
पतझर के उद्यान के फाटक
और रबीनिया की गिरी पत्तियों से ।

गा तू, आ जाएँगी मुझे वे चीज़ें याद,
नहीं बैठूँगा मैं जैसे बिसरा हुआ सब कुछ ।
अच्‍छा लगता है मुझे और इतना सहज --
देखना माँ को और उसे याद करते हुए मुर्गों को,

हमेशा के लिए प्रेम हो गया है मुझे
कुहरे और ओस के घिरे भुर्ज वृक्षों के नीचे
उनकी सुनहरी चोटियों
और सूती वस्‍त्र-जैसी छाल से ।

इसलिए अब चीज़ें बुरी नहीं लगती हृदय को
गीत और मदिरा भरे प्‍यालों के पीछे
मुझे दिखाई दी तू उस भुर्ज वृक्ष की तरह
जो खड़ा है आत्‍मीय खिड़की के नीचे ।