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बहार-1 / नज़ीर अकबराबादी

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शब को चमन में वाह! वाह! क्या ही बहार थी मची।
फूल खिले, थे फूल-फूल गुंचे खिले कली-कली॥
बेला, चमेली, रायबेल, मोतिया जूही सेबती।
बादेसबा<ref>प्रातः काल की हवा</ref> भी चलती थी, इत्रो गुलाब में बसी॥
हौज पड़े छलकते थे, नहरें हिलोरें लेती थी।
शोख़<ref>चंचल</ref> बग़ल में गुंचा लब<ref>कली जैसे कोमल गुलाबी होंठों वाला, वाली</ref> मै<ref>शराब</ref> के नशों की ताज़गी॥
ऐशो-तरब<ref>रास-विलास</ref> की लहर में, रात जब आधी ढल गई।
इसमें कहीं से है ग़ज़ब, निकली जो मकर चांदनी॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥1॥

रात तो क्या ही ऐश की ठहरी थी आके अंजुमन<ref>महफ़िल</ref>।
तारे खिले थे मह रतन<ref>चमकते मोती</ref>, फूल खिले चमन चमन॥
नरगिसो नारो<ref>अनार</ref> यासमन<ref>चमेली</ref>, सोसनो<ref>नीला फूल</ref> तुरें नस्तरन।
कब्को<ref>चकोर</ref> नज़रो ख़न्दा ज़न<ref>प्रसन्न</ref>, बुलबुलो कुमरी<ref>सफेद पक्षी</ref> नाराज़न॥
यार बग़ल में गुलबदन, सुर्ख़ गले में पैरहन<ref>वस्त्र, कुर्ता</ref>।
सीना व सीना, तन बत न, ऐशो तरब के सब बरन॥
इसमें रक़ीबे<ref>किसी स्त्री से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति परस्पर रक़ीब होते हैं</ref> दिल शिकन<ref>दिल तोड़ने वाला</ref>, आया गजर का करके फ़न।
थाली कहीं से ला-शिताब<ref>शीघ्र</ref>, दी है बजा ठनन ठनन॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥2॥

बाग में शब को वाह! वाह क्या ही मज़ों के घोर थे।
तोते व बगले, मोर थे, फ़ाख्तों के भी शोर थे॥
शोख़ पर अपने जोर थे, उसके बरन भी ज़ोर थे।
तोड़े कड़े दबोर<ref>चांदी या सोने के फूल, एक किस्म का जेवर, पांव के छोटे-छोटे घुंघरू</ref> थे, छल्ले भी पोर पोर थे॥
यार हमारा चांद था, चांद के हम चकोर थे।
दोनों चकई व चकवा थे, दोनों पतंग व डोर थे॥
मै के नशों के शोर थे, कपड़े भी शोर बोर थे।
बोला रक़ीब<ref>किसी स्त्री से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति आपस में रक़ीब होते हैं</ref> दिन दिये, दौड़ियो यारो चोर थे॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥3॥

क्या ही मजे़ थे रात को, यारो मैं तुमसे क्या कहूं।
सहने चमन इरम<ref>स्वर्ग</ref> नमूं<ref>शुद्ध रूप, बिल्कुल वैसी ही</ref> डालियां झूमें सर निगूं<ref>अधोमुख, उलटी, नीचे झुकी हुई</ref>॥
शोख़<ref>चंचल, चुलबुला</ref> बगल में फनूं<ref>करतब दिखाने वाला</ref>, ऐशो तरब फु़जूं फु़जूं<ref>अधिकाधिक</ref>।
मै के बहे थे आके खूं़, चेहरे नशों में लालागूं<ref>पद्मराग जैसे रक्त-वर्ण का</ref>॥
यार के नाज़ और फु़सूं<ref>जादू</ref>, अपने भी इश्क़ और जुनूं।
जाम पुकारे मुंह लगूं, ऐश पुकारे दम न लूं॥
इसमें रक़ीब बदशगूं<ref>अशुभ</ref> कुछ न बना तो वह जुबूं।
पिछले ही पहर बनके मुर्ग़, बोला ही आके कुकडूं कूं॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥4॥

लूटे हैं क्या ही हमने वाह! रात मजे बहार के।
अंखड़ियों सुर्मे दार के, लाल मिस्सी निगार<ref>प्रेयसी, प्रेम पात्र</ref> के॥
काकुले<ref>बालों की लट</ref> मुश्कवार<ref>कस्तूरी जैसी सुगन्ध फैलाने वाली</ref> के, तुर्रए<ref>अलक, बालों की लट</ref> ताबदार<ref>ज्योतिर्मय</ref> के।
मैं के नशों के तार के, फूलों के शाख़सार<ref>जहां बहुत से पेड़ हों</ref>
बाहें गले में यार के, बोसो किनार प्यार के।
हाथों में गजरे तार के, लच्छे गलों में हार के॥
भागा रक़ीब हार के, हाथों पे हाथ मार के।
कुछ न बना तो दी अजां, कोठे पे जा पुकार के॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥5॥

रात हुए थे वाह! वाह! क्या ही नशे रसा-रसा।
पीते थे मै बसा बसा, फूलों में हम बसा-बसा॥
शोख़ बग़ल में चांद सा, देता था बोसे हंस हंसा।
जुल्फ़ों में उसकी दिल फंसा, आनो अदा में जी बसा॥
जामा बदन में चुसचुसा, फूल हुआ था बस बसा।
नींदों में यार रसमसा ले था जमाई कसमसा॥
इसमें रक़ीब करकसा<ref>लड़ाका</ref> करके सहर का वस्वसा<ref>अनिष्ट की शंका, शक, बहम</ref>।
लाके नक़्क़ारा या दुहल<ref>धोंसा, ढोल</ref> घूं घूं बजाया कसकसां॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥6॥

क्या ही ”नज़ीर“ रात को ऐश के थे मुक़ाबले।
मै के नशे उबल चले, दिल के पराव, हौसले॥
जी पे खु़शी के दर खुले रंजोतअब<ref>तकलीफ</ref> के हौसले।
शोख़ के नाज़ चुलबुले, बोसों के थे ये मामले॥
नाज़ो अदा के चोंचले, ऐशो तरब के गुलगुले।
यार लिपट रहा गले, दिल में खु़शी के वलवले॥
इसमें रक़ीब दम न ले, बोला ही करके अश्ग़ले<ref>अधिक काम धंधे</ref>।
बांधो कमर मुसाफ़िरों, कूच करें हैं क़ाफ़िले<ref>यात्री-दल</ref>॥
सुबह के डर से हड़बड़ा, यार ने घर की राह ली।
हम भी दग़ा में आ गए, मुफ़्त बहार लुट गई॥7॥

शब्दार्थ
<references/>