भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत नहीं बस ज़रा सा... / विवेक चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत नहीं बस जरा सा...
रखे रहना प्यार हमारे बीच

जैसे जरा सा है खट्टे करोंदे में रस
जरा सा है रस भरे खीरे में बीज
जरा सा है गौरैया की चोंच में
 जुन्डी का दाना
जरा सी देर है सुबह का सूरज मुलायम
जरा सी दूर ही साथ चलती है नदी
जरा सी देर ही रहेगी ओस

और बस जरा सी ही है
लाल मुरम की सड़क
जो खेत तक जाएगी
खेत में जरा से ईख चुराएँगे
लेटकर चूसेंगे
जरा सा हँसेंगे
जरा सा रो लेंगे

सांझ की गोधूलि तक
बस जरा सा रखे रहना
प्यार हमारे बीच...।