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बहुत हँसता हूँ मैं लेकिन तुम्हारा ग़म नहीं जाता / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर
Kavita Kosh से
बहुत हँसता हूँ मैं लेकिन तुम्हारा ग़म नहीं जाता
कभी दिल से तुम्हारी याद का आलम नहीं जाता
मिरी इक आँख दूजी से लिपट के रोज रोती है
मिरी आँखों से ये बरसात का मौसम नहीं जाता
मिरे अहबाब यूँ मुझको तसल्ली रोज देते हैं
तसल्ली से मगर ग़म तो किसी का कम नहीं जाता
किसी ने चूम कर आँखें दुआ दी थी कभी मुझको
दुआओं के असर से भी मिरा मातम नहीं जाता
घुटन है, बेबसी है और रातों की तबीली है
बस इतना जान लो तुम भी कि मेरा दम नहीं जाता