भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहे नदी / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पर्वत से चल बहे नदी ।
कल-कल कल-कल बहे नदी ।

जंगल-जंगल बहे नदी ।
छल-छल छल-छल बहे नदी ।

घाट से बँध कर बहे नदी ।
काट के पत्थर बहे नदी ।

गुस्से में भर बहे नदी ।
उफ़न-उफ़न कर बहे नदी ।

मीलों चल कर बहे नदी ।
दूर समंदर बहे नदी ।