भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादल ज़रूर बरसेगा / मानबहादुर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादल बरसेगा -- तुम ख़ून का सपना देखो
ख़ून में नदियाँ उमड़ेंगी
रो‍ओं में सिवान हरियाएगा
इस पेड़ की जड़ पर बैठ सुस्ताओ
यह तुम्हारा ही सपना संजो रहा है

छिट-पुट गिरती इन बूँदों को मत गिनो
इनमें सातों समन्दर की बड़वाग्नि निथर रही है
तुम घर के पनालों को साफ़ रक्खो
पानी ख़ूब बरसेगा
इस समय तुम्हारे दोस्त तुम्हें याद नहीं करेंगे
तुम्हारा भाई शहर की दीवारों पर
सिनेमा का इश्तहार देख रहा होगा

तुम उन्हें मत सोचो
उस औरत में बहो
जो ख़ून में बिजलियाँ बो रही है
इस पेड़ की जड़ों में -- उसका इन्तज़ार सहो
जो सिवान में हरियाएगी
क्योंकि वह जानती है -- बादल ज़रूर बरसेगा

बादल ज़रूर बरसेगा
तब तक तुम अपने में
उस औरत का सपना बो‍ओ
क्योंकि वह बड़ी प्रतीक्षा में है
कि तुममें यह बादल ज़रूर बरसेगा ।