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बापू के चश्मे के पार की नायिकाएँ / मृदुला सिंह

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कल सड़क पर देखा मैने
सच का करुण चेहरा
स्वच्छता मिशन की खाँटी नायिकाएँ
ठसम ठस्स कचरे से भरे रिक्शे
खीचते चल रही थी जांगर खटाते
क्या यह सबका पाप धोने वाली
पुराणों से उतरी गंगाएँ हैं?
नहीं ये औरतें हैं
इसलिए लोग इन्हें
कचरावाली कहते हैं
मां कहलाने के लिए तो
नदी होना जरूरी है

दीवार पर बना है बापू का चश्मा
वे देख रहे हैं सब
कहते हैं-
मैं ईश्वर के सबसे करीब बैठता हूँ
देखता हूँ कि ईश्वर के काम करने का ढंग
ठीक इनके जैसा है

स्वच्छता का
राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है शहर को
उसमें इनके ही पसीने की चमक है
पर पसीने की चमक से
पेट की भूख
और सम्मान का उजाला नही बढ़ता
इंसान गुजरते जाते हैं किनारे से
पर गौरव पथ के बीच लगे पौधे
करते हैं यशोगान इनका
चमचमाती सड़क
स्वागत करती है बाहें फैला कर

अरे देखो!
चौक की हरी बत्ती भी अब बोल पड़ी
जाओ, जल्द निकलो
मांगो अपना वाजिब हक
कि दुनिया सिर्फ
महंगे रैपरों, ब्रांडेड चीजों के कवर
और बचा हुआ खाना फ़ेंकने वालों की नही है