भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबूजी / एस. मनोज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहिया रहथि बाबूजी
हम रही निश्चिंत।
मुदा घरक सभ लोक
रहैत छलै सैदखन फिरिसान
कतय रोकता बाबूजी
कतय टोकता बाबूजी।
बाबूजीक छलनि
समाजक ज्ञान
व्यवहारक ज्ञान
समयक ज्ञान
पोथीक ज्ञान।
तें ओ
सैदखन रहथि सचेत
करैत रहथि
सबहक सचेत।
मुदा आइ जखन
नहि छथि बाबूजी
घरक सभ लोक अछि निश्चिंत
आ हम छी फिरिसान
कोनाक बढ़तै घर
आ कोनाक बढ़तै समाज
बिना बाबूजीक।