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बार-बार रौरव जग का / अज्ञेय

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 बार-बार रौरव जग का मेरा आह्वान किया करता है :
मेरी अन्तज्र्योति बुझा देने को तम से नभ भरता है।
पर प्रियतम! जिन प्राणों पर पड़ चुकी कभी भी तेरी छाया-
उन्हें खींच लेने की शक्ति कहाँ से लावे उसकी माया!

नीरव उर-मन्दिर में यह मन तेरा ध्यान किया करता है-
यदपि सदा रौरव जग का मेरा आह्वान किया करता है।

1935