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बाला-3 / नज़ीर अकबराबादी

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अब तो हर शोख़ परीवश<ref>अप्सरा जैसी सुन्दर</ref> ने संभाला बाला।
हर कहीं ज़ोर दिखाता है उजाला बाला।
सबके बालों से तुम्हारा है निराला बाला।
तुमने जिस दिन से सनम कान में डाला बाला।
हो गया चांद से रुख़सार का हाला बाला॥

आई वह शोख़ जो कल नाज़ो अदा से इस जा।
थी वह सज धज कि परी देख के हो जाये फ़िदा<ref>मुग</ref>।
फुरतियां ग़म्ज़ों की अब उसके कहूँ मैं क्या-क्या।
नौके मिज़गां कोा ख़बर होने न दी आह ज़रा।
दिल को यूं उसकी निगाह ले गई बाला बाला॥

चाल चलती है अ़जब आन से यह नाज भरी।
हर क़दम पर मेरे सीने में है ठोकर लगती।
मस्तियां वाह मैं क्या-क्या कहूं इस जोबन की।
जब हिलाती है सुराही सी वह गर्दन अपनी।
नशए हुस्न<ref>सौन्दर्य की मादकता</ref> को करता है दो बाला बाला॥।

उसकी पलकों की जो लगती है मेरे दिल में नोक।
ऐ दिल उस शोख़ के तू बाले से जोबन को न टोक।
आह सीने में करूं अपने मैं किस किस की रोक।
एक तो क़हर है कानों में किरन फूल की झोक।
तिस पे काफ़िर है जिगर छेदने बाला बाला॥

बाले भटकावे के अन्दाज थे करते क्या क्या।
जुज़<ref>अतिरिक्त्</ref> खि़जल<ref>लज्जित होना</ref> होने के कुछ जी न बन आता था।
यह जो हर झोंक में है अपनी झलक दिखलाता।
ऐ दिल उस बाले की हरगिज़ तू लगावट पे न जा।
तुझको बतलावेगा बाली पै यह बाला बाला॥

जब वह बन ठन के निकलते हैं बना हुस्न की शान।
उसकी हर आन पे होती है फ़िदा मेरी जान।
तर्ज़ चितवन की लगावट में दिखा सहरे निशान<ref>जादुई</ref>।
वह भी क्या आन का ढब है कि दिखाता हर आन।
कान के पास से सरका के दोशाला बाला॥

हो गया जब से दिल उस शोख़ के बाले में असीर<ref>कै़द</ref>।
कोई बन आती नहीं वस्ल<ref>मिलन</ref> की उसके तदबीर।
यां तक उस बाले ने की है मेरे जी में तासीर।
अब तो रह रह के मेरा दिल यही कहता है ”नज़ीर“।
एक नज़र चलके मुझे उसका दिखा ला बाला॥

शब्दार्थ
<references/>