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बिखरते / अमित कुमार मल्ल

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बिखरते
फिसलते
अक्षरों को मैंने बाँधा
मुट्ठी को बंद किया
शब्दो को
पकड़ा

अर्थवत्ता दी
मायने दिए
आग सी एहसास दी

अस्मिता पाते ही
शब्द
बिगड़ने लगे
बँधे राह से हटने लगे
वे नए अर्थ से
अपने को जानने लगे