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बिनती से बोलली गौरा देई, सुनऽ हे महादेव हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पार्वती का घर बालक के बिना सूना है। वे शिवजी के साथ तीर्थाटन करके पुण्यफल प्राप्त करती हैं। लौटने पर कदंब के नीचे बैठते ही उन लोगों को नींद आ जाती है। गौरी स्वप्न में बछड़े के साथ गाय, तिलक किये ब्राह्मण, गुच्छे में फले हुए आम और पान देखती हैं। वे इस अपूर्व स्वप्न की चर्चा शिवजी से करती हैं। शिवजी स्वप्न का विचार करते हुए कहते हैं-‘गाय लक्ष्मी का, ब्राह्मण नारायण का, आम का गुच्छा बालक का तथा पान सुंदर भविष्य का प्रतीक है।’ निश्चित समय पर उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है तथा आनंदोत्सव मनाये जाते हैं। अंत में, बालक्रीड़ा से पति-पत्नी के आनंदित होने का भी उल्लेख है।

बिनती<ref>विनम्रता से; प्रार्थना से</ref> सेॅ बोलली गौरा देई, सुनऽ हे महादेव हे।
अहे सिव, बिनु रे सम्पति राजहीन, त संपति कथी लोय हे॥1॥
चलऽ सिव चलऽ सिव कासी, परयागराज नहाबौं<ref>स्नान करेंगे</ref> हे।
ललना रे, जनम जनम केरऽ पाप, कटित करी आबौं हे॥2॥
नहाये सोन्हाये<ref>‘नहाये’ का अनुरणात्मक प्रयोग</ref> सिव लौटल, कदम तर ठाढ़<ref>खड़ा</ref> भेल हे।
ललना रे, बही गेलै सीतल बतसिया, निनिया<ref>नींद</ref> मोरा आबी गेलै हे॥3॥
घड़ी रात गेलै पहर रात, आरो पहर रात हे।
ललना रे, सपना देखलें अजगूत<ref>विचित्र; बेमेल</ref>, सपना क बिचारहू हे॥4॥
गइया त देखलें बछड़ुआ<ref>बछेड़ा</ref> सँग, बाभान तिलक लेल हे।
ललना रे, अममा त देखलें भरलऽ फल, पनमा सोहावन हे॥5॥
गइया त तोहरऽ लछमी छेकै, बाभन नरायन हे।
ललना रे, अममा त तोहरऽ बालक छिकौं, पनमा सोहावन हे॥6॥
सुरुज उगलै पऽ फाटलै, बबुआ जनम लेल हे।
ललना रे, बाज लागलै अनंद बधावा, महल उठे सोहर हे॥7॥
तोहें तऽ बैठऽ सिव बघछाल पर, हम धनि चौकठ हे।
ललना रे, नुनुआ घुड़ुकै<ref>घुटरुन चलना; हाथ पैर के बल बच्चे का चलना; घुड़कना</ref> भरि एँगन, देखतेॅ सोहावन हे॥8॥

शब्दार्थ
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