भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीति गेलै सावन आबि गेलै भादो, चारो दिस कादो रे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में कृष्ण जन्म का उल्लेख हुआ है। भादो महीने में वर्षा हो रही है। मेघ गरज रहा है। बिजली चमक रही है। उसी समय भगवान कृष्ण का जन्म होता है। जन्म के समय कृष्ण शंख, चक्र, गदा, पù और कुंडल धारण किये हुए हैं। जन्म होते ही देवकी-वसुदेव के सभी बंधन टूट जाते हैं। वसुदेव उन्हें लेकर यमुना पार करते हुए गोकुल चले जाते हैं। यमुना कृष्ण के चरण-स्पर्श के लिए बढ़ती है और स्पर्श करके अपना भाग्य सराहती हुई, सिमट जाती है।

बीति गेलै सावन आबि गेलै भादो, चारो दिस कादो<ref>कीचड़</ref> रे।
ललना, बिजली चमके चारु ओर, मोद बढ़ाबल रे॥1॥
पहिलुक<ref>पहला</ref> पहर जब बीतल, पहरुआ सूतल रे।
ललना, सूतल गाम केर लोग, केओ नहीं जागल रे॥2॥
दोसर पहर जब बीतल, पहरू जागल रे।
ललना, देबकी बेदना बेथित<ref>व्यथित</ref> दगरिन लाबहु रे॥3॥
इहाँ कहाँ दगरिन पैबै, देवता सेॅ मनैबै रे।
ललना, पूरुब<ref>पूर्वजन्म का</ref> जलम केर चूक, से तोंय<ref>तुम</ref> दुख पाबल रे॥4॥
जब जनमल मधुसूदन, सब बंधन छूटल रे।
ललना, जनमल कंस निकंदन, जग पालक रे।5॥
होरिला के हाथ हम देखल, संख चकर गदा छल रे।
ललना, गरबा में सोभै मोहरमाला, काने दुनों कुंडल रे॥6॥
जेखनी<ref>जिस समय</ref> किसुन जलम लेल, बसुदेव हुनकॉ<ref>उन्हें</ref> लय<ref>लेकर</ref> धाबल रे।
ललना, जमुना के नीर अथाह भेल, पार कइसे उतरब रे॥7॥
किसुन के चरन छूबि, जमुना के जल गेल पताले रे।
ललना, किसुन के चरन छूबि आपनों से भाग सराहल रे॥8॥

शब्दार्थ
<references/>