भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुझौवल- खण्ड-7 / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

61
सुतला केॅ दै हाँक जगावै
असकल्लो में हाँसै-गावै
बात सुनै सब बात कहै सब
सब्भे केॅ एकरा सें मतलब ।
-टेलिफोन
62
लम्बा मूँ के एक छवारिक
टीक पचासो हाथोॅ के
मुँह पर रखोॅ तेॅ कान पकड़तौं
झूठ नै एक्को बातोॅ के ।
-टेलीफोन
63
दू गोतिया के बत्तीस भाय
खइयो वक्ती करै लड़ाय
कत्तो लड़ै कहीं नै जाय
साथैं खाय, बरोबर खाय ।
-दाँत
64
एक्के कोठरी एक्के द्वार
सुतली छै इक रानी जै में
दरवाजा के भीतर घेरी
पहरोदार खड़ा छै वै में ।
-जीभ आरो दाँत
65
शीशमहल में राजकुमारी
जल सें ऊपर हाँसै छै
कारी बुढ़िया आवी रोजे
राजकुमारी फाँसै छै ।
-लालटेन
66
एक अजूबा पहरेदार
खाना खाय नै टपकै लार
दाँत बिना ही डोलै-झूमै
दाँत लेलेॅ घरवैया घूमै ।
-ताला-चाभी
67
देह भले छै ओकरोॅ खोल
बिन चमड़ा के जेन्होॅ ढोल
राजा-नौकर कुछ नै जानै
सोनोॅ-लोहोॅ कुछ नै मानै
ओकरा तेॅ बस एक्के हूब
औंगरी पकड़ी झूलौं खूब ।
-अंगुठी
68
चक्कै ही चक्का केॅ खाय
जाय के बदला दिन-दिन आय ।
-दिनाय
69
एक्के मुँह पचासो दाँत
नै कहीं हड्डी, नै कहीं आँत
यहू हुऐ नै, खाय या चाखै
खाली चिड़ियाँ मुँह में राखै ।
-पिंजरा
70
एक पोखर में सौ-सौ कुइयाँ
मिसरी रँ कुइयाँ रोॅ पानी
एक कुइयाँ रोॅ एक जोगवारिन
सब जोगवारिन के एक रानी
पोखर के नै ठौर-ठिकान
केकरौ-केकरौ एकरोॅ ज्ञान ।
-मधुमक्खी छत्ता