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बेटी (कुछ दोहे ) / राजेश चेतन

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माँ देवी का रुप है माँ ही है भगवान
माँ मुझको मत मारना, मैं तेरी पहचान

चाकू चलता देखकर, बेटी करे पुकार
क्या मुझको माता नही, जीने का अधिकार

अस्पताल को छोड़कर, चल आंगन घर द्वार
बाबुल हमको चाहिये, बस थोड़ा सा प्यार

डाक्टर ने जैसे दिया, इंजेक्शन विषपान
बेटी रोई जोर से, तू कैसा भगवान

क्या जग ने देखा नही, इंदिरा जी का काम
बेटी भी अब बाप का, करती उंचा नाम

ईश्वर से हमको मिले, चाहे जो सन्तान
बेटा बेटी आजकल, होते एक समान

सासु जी बेकार में, हमसे हैं नाराज
बेटी कैसे मार दूँ , क्या मैं हूँ यमराज